कहानी के प्रमुख पात्र
कहानी में मुख्य किरदार निम्नलिखित हैं:
गोपाल: कहानी का मुख्य पात्र। गोपाल एक साधारण लेकिन बेहद चतुर और मजाकिया व्यक्ति है, जो गाँव के लोगों को अपनी हँसी और अनोखी सोच से हँसाता है। उसका लक्ष्य केवल लोगों को खुश रखना है, और उसने "हँसी बेचने" का व्यवसाय शुरू किया है।
मुखिया जी: गाँव के मुखिया, जो गोपाल के हँसी बेचने के विचार से पहले तो हैरान होते हैं, लेकिन बाद में गोपाल की सोच की तारीफ करते हैं। मुखिया जी गाँव के सम्मानित व्यक्ति हैं, जो गोपाल की हँसी की कला की सराहना करते हैं।
गाँव वाले: ये पात्र गाँव के आम लोग हैं, जो गोपाल के अनोखे व्यवसाय से प्रभावित होते हैं और उसकी हँसी खरीदते हैं। वे गोपाल के ग्राहक भी हैं और उसके मजेदार किस्सों का आनंद लेते हैं।
किसान रामू: गाँव का एक साधारण किसान, जो गोपाल से सबसे पहले हँसी खरीदता है। वह गोपाल के पहले ग्राहक के रूप में कहानी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सुदामा: गाँव का एक जिज्ञासु व्यक्ति, जो गोपाल की हरकतों को देखता रहता है और हमेशा उसके नए विचारों का इंतजार करता है। सुदामा गोपाल का अच्छा दोस्त भी है।
ये सभी किरदार मिलकर कहानी को जीवंत बनाते हैं और इसमें हास्य का रस घोलते हैं।
कहानी संग्रह
यह कहानी एक छोटे से गाँव के रहने वाले गोपाल की है, जो अपने अनोखे तरीकों और मज़ेदार हरकतों के लिए मशहूर था। गोपाल की आदत थी कि वह हमेशा कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करता रहता था, जिससे गाँव वालों को हँसी आती थी।
एक दिन गोपाल ने सोचा कि वह एक नया व्यवसाय शुरू करेगा। उसने सोचा, "गाँव में सब्ज़ी तो सब बेचते हैं, लेकिन कोई हँसी नहीं बेचता। क्यों न मैं हँसी बेचने का व्यवसाय शुरू करूँ?"
वह अगले दिन एक टोकरी लेकर गाँव के चौक पर बैठ गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा, "हँसी खरीदो, हँसी खरीदो! सस्ती और ताज़ा हँसी, केवल एक रुपया में।"
गाँव के लोग यह सुनकर हैरान हो गए। वे गोपाल के पास आए और बोले, "गोपाल, यह क्या मजाक है? हँसी कौन बेचता है?"
गोपाल ने हँसते हुए कहा, "अरे भाई, अगर सब्ज़ी बिक सकती है तो हँसी क्यों नहीं? आप एक रुपया दीजिए और मैं आपको ऐसा हँसाऊँगा कि आप अपनी चिंता भूल जाएंगे।"
एक गाँव वाला सोच में पड़ गया और उसने गोपाल को एक रुपया दिया। गोपाल ने तुरंत एक मजेदार किस्सा सुनाया और वह आदमी हँसते-हँसते लोटपोट हो गया। अब गाँव वालों में उत्सुकता बढ़ गई और सबने गोपाल से हँसी खरीदनी शुरू कर दी।
गोपाल का "हँसी बेचने" का व्यवसाय चल निकला। हर दिन उसके पास लोग आते और हँसी खरीदते। गोपाल भी खुश था, क्योंकि उसने अपने अनोखे विचार से न केवल गाँव वालों को हँसाया बल्कि कुछ पैसे भी कमाए।
कुछ दिनों बाद, गाँव के मुखिया ने गोपाल को बुलाया और कहा, "गोपाल, तुमने तो कमाल कर दिया! तुम्हारी वजह से गाँव में खुशियाँ फैल गई हैं। लेकिन अब तुम अपनी हँसी का भाव बढ़ाने की सोच रहे हो क्या?"
गोपाल ने मुस्कराते हुए कहा, "मुखिया जी, हँसी का भाव बढ़ाने की ज़रूरत नहीं है। हँसी तो दिल से निकलती है, उसका कोई भाव नहीं होता। मैं तो बस सबको हँसते हुए देखना चाहता हूँ।"
मुखिया ने गोपाल की पीठ थपथपाई और कहा, "तुम सच में एक अनोखे इंसान हो, गोपाल। तुम्हारे जैसे लोगों की वजह से ही दुनिया हँसती है।"
और इस तरह, गोपाल ने साबित कर दिया कि हँसी बेचना भी एक कला है, और जो इसे सच्चे दिल से बेचता है, वह हमेशा लोगों के दिलों में बसता है।
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